Thursday 8 March 2018

विरोध मूर्ति का है या समाजवाद का?

त्रिपुरा में लेनिन कि मूर्ति तोड़ने का जबरदस्त विरोध हो रहा है। पर इसी बीच कुछ लोगों को यह समझ नहीं आ रहा है कि आखिर लेनिन का विरोध या समर्थन क्यों है?
सामान्य तौर पर साम्यवादी विचार जनता के बीच संसाधनों का समान बटवारा है। किंतु यह विचार इससे भी कहीं अधिक बढ़कर है। क्योंकि यह विचार उग्रवाद और अराजकता  को जन्म देता है। इस विचार को लोगों को स्वीकार करने को नहीं कहा जाता है, बल्कि यह उन पर थोपा जाता है।
लेनिन समाज को पुनर्गठित करने का विचार रखते है और इसके लिए बुद्धजीवी, इंजिनियर लोगों की हत्या करने से भी नहीं चूकते। वो उच्च समाज को खत्म करने में विश्वास करते थे। यह पर उच्च समाज जातिगत नहीं है बल्कि वो समृद्ध समाज है जिसके पास अपनी जरूरत से ज्यादा संसाधन है। ऐसा रूस में उस समय हुआ जब रूस में उनको विचारों को हवा मिली और लगभग १ करोड़ लोग मौत के घाट उतार दिए गए।
हमनें हिटलर के बारे में बहुत सुना उसके नाज़ीवाद के बारे में भी काफी कुछ जानते है। क्योंकि हमेशा से उसकी आलोचना सुनी कि कैसे उसने लगभग 50 लाख यहूदियों को मौत के घाट उतार दिया। पर शायद हम ये नहीं जानते कि हिटलर भी लेनिन से प्रेरित था। जिसके बारे में काल मार्क्स ने कहा है कि हिटलर ने साम्य वाद की विचारधारा को सही से समझ नहीं सका। साम्यवाद धर्म के आधार पर हत्या नहीं करने को कहता बल्कि क्लास के आधार पर होना चाहिए।
लेनिन के विचारों की क्रूरता एक अन्य घटना से भी समझिए। 1930 के आसपास लेनिन को बताया गया अगर यूक्रेन में कोई प्रभावी कदम नहीं उठाया गया तो युक्रेन उनके हाथ से निकल सकता है।  इसके लिए एक मीटिंग बुलाई गई और उसने एक निर्णय लिया गया। जो इतना भयानक था कि सोच कर भी सिहर उठेगे। उन्होंने 1932 की सर्दियों से युक्रेन में खाने की आपूर्ति बंद कर दी। फिर भी लोग वहां सब्जी और अन्य फसलों पर जीवित रहे। यह बात जब ऊपर पहुंची तो एक और फैसला लिया गया। उन्होंने लोगों के घरों से खाने पीने की चीजें जब्त कर ली। और फिर धीमी मौत का एक भयानक सिलसिला शुरू हुआ। लोग भूख से तड़प तड़प कर मरने लगे। एक अनुमान के मुताबिक लगभग 70 लाख 1932-33 के दौरान इस त्रसदी में मारे गए। क्या आप सोच सकते है जब्त किए गए अनाज का क्या किया गया? यह अनाज USA को सप्लाई किया गया।
अब आप खुद समझ सकते है कि यह कितना बड़ा समाजवाद है।

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